मैं और मेरी चाय..
छन्नी से उतारे गए दूध को
मैंने बचपन से चाय समझकर पिया था .....
कभी कबार रिश्ते दारों के यहाँ
गलतीसे पूछा चाय पियोगी क्या
माँ बाप के होते हुवे
हाँ बोलने का प्रयास न हुवाँ .....
इतनी सिद्दत से मैंने तुमको चाँहा के
पेट दुखने के बहाने से , काली चाय ही सही
पर तुमसे रूबरू, एक मुलाक़ात तो हो जायें .....
आखिर वो वक़्त आही गया,
जब पूरी कायनात तुमको हमसे मिलाने की शिद्दत मैं जुट गयी
के कॉलेज मैं दोस्तों के साथ नुक्कड़ पे तुम जो मिल गयी .....
लेखिका ,
पद्मजा राजगुरु
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